ज़िंदगी कुछ थाम गयी है...
हस्रतें हताश हैं ,
मायूसी का समा सारा,
चाहतें निराश हैं !
लगता है नहर ख़ुशहाली की ....
बहते बहते थाम गयी है ,
ज़िंदगी कुछ थाम गयी है !
वक़्त तो आता जाता है ....
सूरज घबराया अपनी निरंतर चाल से ,
हवा भटकते हुए परेशान हो,
मचल रही है तूफ़ान को !
पत्ते हिलते हिलते गिर गाये ...
शाम की धूप वापसी के रास्ते टहल रही है ...
ज़िंदगी कुछ थाम गयी है !
उकता गाये हैं हर रोज़ की भाग दौड़ से ....
गति इतनी है की लगता है दुनिया भी कुछ थाम गयी है !
ख़ुदकुशी कर ली सपनो ने ..
लहू बहता है और नावज़ जाम गयी है ...
ज़िंगड़ी कुछ थाम गयी है !!
Sunday, October 21, 2007
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Aabhas
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