मेरी ज़िंदगी के रेगिस्तान मे ख़ुशनुमा ज़र्रा हो पानी का ...
आखो मे नींद की तरह हो जो कड़ी महनत के बाद सुख दे रही है ...
एक मुस्कां हो ऐसी जिसको हासिल करते करते होंठ सूख गये हैं,
मौसमी बहार नही भले ही पत्झद तुम हो जाओ .
मेरे सदमों को डोर करो, प्यार के अंकुर मुझे बहारो मे सजाओ .!
Monday, October 22, 2007
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Aabhas
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