Monday, October 22, 2007

towards u !

पता है क्या था और क्या होगा ,
उस तरफ़ नदी के दलदल ही होगा ,
जाना चाहते है उस छोर, पता है वो मंज़िल मेरी नही,
रास्ता गम गया है , हर मोड़ धसता हुआ
हर शय जदोजहद मे हैं,
वो मुकाम जो अपना नही है
वो शाक्स आज भी है मेरी आरज़ू मैं सजता हुआ
पा नही सकते है तुझ को जानते हैं
फिर भी इस जहाँ मे क्यू तू ही मेरी मंज़िल है
और मेरा हर सफ़र,
मंज़िल-ए-जनाब आप का पता पूछता हुआ ...

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Aabhas

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