अंतरात्मा का द्वंद शांत नहीं होता।स्थिरता और ठहराव में शायद ज़मीन आसमान काअंतर होता है।जीवन स्थिर हो भी जाए तो,चित में ठहराव आजाए... ऐसा हमेशा संभव नहीं है।
क्या किसी का चित् भी शांत हुआ है? कौन पकड़ पाया है अपने मन को?
बड़े महारथी लगे, साधु संन्यासी लगे, जीवनदर जीवन, ध्यान, योग, मुद्रा और कड़ा अनुशासन तब जाकर कहीं योगी मन को साध पाते हैं।
बड़े महारथी लगे, साधु संन्यासी लगे, जीवनदर जीवन, ध्यान, योग, मुद्रा और कड़ा अनुशासन तब जाकर कहीं योगी मन को साध पाते हैं।
फिर मैं भी क्या? बस एक चंचल मन..... कभी यहाँ कभी वहाँ।