Monday, October 22, 2007

chand alfaaz ...

1) हम क्यू रोए ग़ालिब हर शय को ?
उसने भी तो एक शक्श खोया है ,
हमारे दिल का दर्द क्या काम होगा
हूँने हमे तन्हाई से ज़्यादा मुलाक़ातों मे रोया है ,!!!

2) तुम तो चले गाये थाइ कब से इंतज़ार हम ने किया,
बदनासीबी ही होगी हमारी काफ़िर
तेरे धोको पर ऐतबार हम ने किया .

3) शायद उस शक्श को मायने हमारे पता नही ,
हम चाहते रहे उनको ता उम्र ,
पर कभी उसने अपने यारों मे ना शुमार मेरा किया .

4) भूल भी जाए तो आज,
क्या भुलाया जा सकेगा
तेरी चाहतों मे ग़ालिब हमने भी
कई रात तड़प तड़प कर गुज़ारी हैं !!!

har rasta mudata hua ...

चाँद उगाता हुआ, सूरज ढलता हुआ,
कुछ टूटे रिश्तो की डोर,
और यॅ मोम का दिल हवा मे घुलता हुआ,
धूप का आँचल खो गया,
सायों के हवाले यॅ आसमान हो गया
आँख खुली रह गयी,
सितारे चमके मेरी बदनासीबी पर हँसते हुए,
और मेरा ज़मीर रोता हुआ,
हम अकेले रह गाये,
और ज़माना हमे ताकता हुआ,
क्या थे क्या हैं पता नही,
पर उस शक्ष से पूछो,
जो कभी मुड़ा नही मेरी तरफ़....
और हर रास्ता मुड़ता हुआ

towards u !

पता है क्या था और क्या होगा ,
उस तरफ़ नदी के दलदल ही होगा ,
जाना चाहते है उस छोर, पता है वो मंज़िल मेरी नही,
रास्ता गम गया है , हर मोड़ धसता हुआ
हर शय जदोजहद मे हैं,
वो मुकाम जो अपना नही है
वो शाक्स आज भी है मेरी आरज़ू मैं सजता हुआ
पा नही सकते है तुझ को जानते हैं
फिर भी इस जहाँ मे क्यू तू ही मेरी मंज़िल है
और मेरा हर सफ़र,
मंज़िल-ए-जनाब आप का पता पूछता हुआ ...

kagaz kee kashti

काग़ज़ की कश्ती से समंदर पार नही होता,
अपनी बदनासीबी पर ऐतबार नही होता,
मरते मरते ज़िंदगी काट रही है,
क्यू कोई मंज़र ख़ुशगवार नही होता,
हज़ारों राह चल कर देखी,
क्यू मेरे रास्ते मे चट्टाने बड़ी हैं,
क्यू कोई पत्थर मील का पत्थर नही होता ?
हांत मे रखे एक नक्शा चल पड़े हैं,
कौन दिशा कौन सी है असमंजस मे हैं,
क्यू भूल भुलैया मे कोई मददगार नही होता ,
काग़ज़ की कश्ती से समंदर पार नही होता ,

आज फिर छलका था सागर,
रूह लाचार पूछ बैठी खुदा से ,
क्या कमी रखी तूने मुझ मे खुदाया ?
क्यू किसी को मुझ से प्यार नही होता ?

sab kuch paas hota hai fir bhi kuch kami see rahtee hai

हर ख़ुशी अजनबी दोस्ती सी रहती है ,
सब कुछ पास होता है फिर भी कुछ कमी सी रहती है
मौसम ख़ुशनुमा बहारो के भी होते हैं,
पटझड़ मैं भी फूलो के चहरे पर मासूमी सी रहती है ,
अफ़साने वीराहा के सुने हैं हज़ारो,
फिर भी दो पल प्यार से बीत सके
क्यू यॅ ज़िद बनी सी रहती है?
हासिल क्या हो जाएगा अगले पल को,
जो और जीने को बेचैनी सी रहती है ?
नज़ारे झुका कर चलते रहना दोस्तो,
राह मे बिखरे पत्थरों मे से कुछ मे ज़िंदगी भी रहती है,
सब कुछ पास होता है फिर भी कुछ कमी सी रहती है !!!!!

Khel !

कुछ गैन्द की टार उछली
काँच बन सतह से जा टकराई,
लो फिर पतंग हो गयी,
कंदील बन आसमान मे चमकी
मौज मे लहराई ,
कभी फिरकी बन जाए
घूम घुमा कर नाचने लगे ,
गिल्ली की तरह चोट खा कर भी
खेल की मस्ती बढ़ाए
और कभी पक्के मंजे सी
कोई डोर से लड़ जाए
ज़िंदगी एक खेल ही तो है ,
ना जाने कब लड़ कर बैठेय हो,
और अगला ही लम्हा जीत का संदेशा लाए,
कुछ भूल चूक होगी ज़रूर पर खेल खेलना मत छोड़ना
साहस रखना, सहन करना
यंहा हर कोई चाहता है मुकाम पर पहूचना
मुमकिन नही बीन खेले
जीत का हासिल हो जाना
हार जीत से भी बड़ा होता है ...
खेलते जाना बस खेलते जाना !

SHOBHA

काश मेरे आँसू एक पल को हो सकते मज़बूत,
पिरोया जा सता उनको एक सूत्र मे , जिसे हम अहसास कहते हैं,
निखारा जा सकता उन्हे चमक बढ़ा दी जाती,
जो दर्द मैं डूबे रखे थाइ उन पर तन्हाई की पोलिश लगाई होती ,
गम और अकलेपान के सहज धात्वी छल्लो के संग जोड़ कर ,
जो कभी एक माला बनाई होती,
निश्चित ही वो सब से दुर्लभ होती ,
मगर दुनिया के लिए वो दुर्लभता बेमतलब होती,
काश मेरी इतनी सी हैसीयत हो जाए,
मेरे आँसूओं की झिलमिल माला तुम को सुलभ हो जाए,
शायद तुम्हारे प्रति मेरा समर्पण तब अमर हो जाए ,
जब मेरी अख से बहा एक आदना सा कतरा तक,
आजीवन तुम्हारी शोभा बढ़ाए !!!

Purpose of life

हसरत है मेरी,उस ज़हन मे सो रहे इंसान को जगा सकू,
आरज़ू है मेरी तुम को कुछ बना सकू,
मंज़िल पर ना पहुच सकी तो क्या,
चाहत है मेरी, तुम को मंज़िल का रास्ता दिखा सकू,
बेकार सी तो कब से पड़ी है ज़िंदगी,
किस्मत है मेरी जो काम तुम्हारे आ सकू,
आज ही पता चला है,मुस्कुराते हो तुम भी
तमन्ना है मेरी ,ज़िंदगी मे तुम्हारी ख़ुशियाँ मैं बरसा सकू.

gam ...

एक रोज़ कभी अपनी मौत के गम मे,
रोने वाले बस हम होंगे
ना जहन्नुम के बाशिंदे,
ना जन्नत के महेमान
गुमनाम उस जाघा पर अपना पता पूछते हम होंगे,
रूह को मेरी हिला -हिला कर तुम पूछना
मेरी इस हालत के ज़िम्मेदार
तेरे प्यार के तोहफ़ा किए
वो गम होंगे बस गुण होंगे

Talaash thee ...

ज्ख्मो को भरने मे अरसा तो लगा ,
मगर फिर भी एक नयी चोट की आस थी,
आँसू बहे, आँखे गहराई
पॅल्को को अब भी किसी बारिश की प्यास थी,
हर वक़्त गुज़ारा डॉवा पूछते ,
फिर भी इस दिल को
एक मीठे से दर्द की तलाश थी ....

ना देना

जब दिल रोए और आँख साथ ना दे,
जब होत तड़ापे और बोल ना फूटे,
ऐसा वक़्त तू किसी को उधार ना देना ,
किसी ज़िंदगी मे सुख के बाद रंज का पहाड़ ना देना ,
प्यासी धरती को सूखे की मार ना देना ,
तू दाता है, सब देता है ... अब किसी को प्यार ना देना !

Talaash

ए अजनबी आज किस मंज़िल की तलाश मे भटकते हो ?जाने अनजाने कितनी रहो से गुज़रते हो ...
भूत चल चुके तन्हा अब , थोड़ी देर को मेरे पास रुक जाओ ,
चाँद घड़ी को ठहर कर मेरे साथ को महसूस करो,
तुम्हे तो क़यामत तक चलना है ,
क़यामत ही तुम्हारी मंज़िल है,
तुम्हे अपनी मंज़िल को पाना है,
पर यू तो ना छोड़ो मुझे अकेला ,

मेरा जहन दर्दनाक वीराना है .
मुझे भी अपने साथ ले लो ,
मिक कर के नये सफ़र की शुरुवात करते है
वीराने के हम दोनो आदी है
बहुत घूमते रहे हैं दोनो अकेले अकेले ,
हेलो अब साथ चलते हैं,
अब कोई दुविधा मे ना पड़ेंगे ,
कोई चौरस्ता सामने आया तो ,
साथ मिल कर तय कर लेंगे किस मोड़ पर जाना है ,
चार क़दम तो चल कर देख लो मेरे सात ,
मंज़िल सामने है ... इसे हाथ बढ़ा कर पाना है !

Tanha kaun ?

एक रात तन्हाई मे ,
नज़र गयी उस जन्हा तक ,
जन्हा हर तन्हा, तन्हा हो कर टिमटिमाता है
राह भटको को रास्ता दिखता है ,

वीराना ही सही तारा है वो ,
सुने अस्समान को जगमगाता है,
समझ पड़ा मुझे तब ऐसा ,
यही सितारो का नाता है ...
हर कोई तन्हा वीराना
हर पल एक दूजे को आस बंधाता है ,
और जब अकेलेपन से उब जाता है टूट जाता है ...
पर सोचो उस चाँद का क्या ?
ख़ूबसूरती की मिसाल तो कहलाता है ,
पर शायद सितारों की भीड़ मैं घबराता है,
फिर भी सदियों से कुछ उमीद पर जी रहा है ,
मिलना होगा धरती से कभी
इस आस मे जड़ हो कर भी
रोज़ एक नये रूप मे लुभाने को आ जाता है !

Tum bhi thy aur Hum bhi !

सुनी सड़को पर अकेले टहलते ,
तुम भी निकले और हम भी ...
पल पल बदलती दुनिया मे ,
तुम भी थे और हम भी ...
बीते दीनो की याद मे खोए ...
तुम भी थे और हम भी ...
दोस्ती खोने वालो मे,
तुम भी थे और हम भी ...
दुनिया की नज़रो से छलके जो,
तुम भी थे और हम भी ...
कुछ गिरे हुए इंसानो को जब पूछा ,
तुम भी थे और हम भी ...
अकेले मे मुस्कुराते तो ,
तुम भी थे और हम भी ...

फिर क्यू समझते हो ख़ुद को ज़रिया ?
नही रखता ज़माना तुम पर ग़लत नज़रिया,
अगर समझते हो बदनाम हो तुम
तो फिर समझो बदनाम हुए हम भी ....

हो भी क्यू ना ?ये सच्चाई है,
जो वक़्त तुम पर गुज़र रहा था ,
वही काटते तो थे हम भी !!!

मेरा नही है .....

हर दिन ज़िंदगी का सुनहरा नही है ,
ख्वबो के अस्समान मैं अब तक कोहरा है सवेरा नही है ,
जहन कब से भटक राहा है बंजारा
अदूरी आरज़ू का अब टॉक कोई बसेरा नही है ,
यू तो बहुत कुछ है अपना सा ,
पर इन सब मे कुछ मेरा नही है ,
जिस मंज़िल को कहते रहे पाना है ,
उसे हासिल करने का हक़ किसी और का होगा
मेरा नही है .....

tumhe bhulaane aaye hian

देख लो किस्मत एक नयी सौगात लाए हैं ,
यादो को समय के हवाले सौपने लाए हैं,
तुम्हे ज़िंदा रख कर क्या पाया हम ने ?
चलो अब देखे क्या पाते हैं आगे ,
आज तुम्हे यंहा भुलाने आए हैं .....

आज से नज़रिया बदल रहा है,
दिल का दरिया सुख चुका है ,
इस अकाल मे, तुम्हे पाताल मे
हम दफ़नाने लाए हैं ,
आज तुम्हे यंहा भुलाने आए हैं .....

तुम्हारे लिए तो पहले ही ये मुमकिन था,
हम अपने आप को एक नया खेल दिखाने लाए हैं ,
जाओ ख़ुश रहना हर पल को तुम ,
तुम्हे दुआ दे कर अपने आप को समझाने आए हैं ,
आज तुम्हे यंहा भुलाने आए हैं .....

purze ... !

1) ज़िंदगी मेरी आबाद ही कब थी ,
जो बर्बाड़ियों का नाम लेते हो,
हम तो पहले से ही मारे माराए हैं ,
क्यू मौत के आने का पैगाम देते हो ?
देना है तो कुछ सुकून दे जाओं ,
क्यू हमारे सर सारे इल्ज़ाम देते हो ?

2) एक कहानी हम ने भी तो थी लिखी
चाँद पुर्ज़ो मे कभी ...
हवा चली कुछ ऐसी
लेखनीयों का पता ठिकाना ना रहा ,
हर किसी ने हुमिं बेवफ़ा समझा
ऐतबार कर सके हम पर कोई
ऐसा कोई हमारा ना रहा

the midday dream !!!

चाँदनी कॅया शहद पी कर आती उनकी ख़ुश्बू पहने ठंडी हवाओ के ख्वाब,
दीं भर की तपीश को चाँद लम्हो के लिए ही सही ,
पर यू भुला जाते हैं ,
जैसे बारिश के मौसम मे मेरे कमरे के भीगते परदे
हवा मे लहरा कर चारे को छूते हुए ,
दिल तक आजाते हैं
यादों को और ज़्यादा ख़ुशनुमा ख़ूबसूरत बना जाते हैं ,
कैसे हैं यॅ सपने अचानक ही टूट जाते हैं ,
और मेरे कमरे के भीगते हुए परदे,
लहराते लहराते सूख जाते हैं ,
अचानक ही आँख खुलती है धूप के टुकड़े बिखर जाते हैं ,
तन्हाई का दामन ओढ़े लुटेरे ,
चाँदनी और तारो को लूट ले जाते हैं !

Aasra ..

मेरी ज़िंदगी के रेगिस्तान मे ख़ुशनुमा ज़र्रा हो पानी का ...
आखो मे नींद की तरह हो जो कड़ी महनत के बाद सुख दे रही है ...
एक मुस्कां हो ऐसी जिसको हासिल करते करते होंठ सूख गये हैं,
मौसमी बहार नही भले ही पत्झद तुम हो जाओ .
मेरे सदमों को डोर करो, प्यार के अंकुर मुझे बहारो मे सजाओ .!

mati ka ho jaana hai ..

बस तेरी हसरत की खातिर शहीद हो गयी हस्रतें,
बेनाम ज़िंदगी जीने का , कोई ख्वाब तो ना था हमारा,
अब जाग कर करें भी तो क्या ?
सामने मंज़िल है ऐसा मुकाम था हमारा ,
रास्ते तो क्या हैं ? कही ना कही तो जाना है ..
मक़सद यही है हमारा ,
इस सफ़र का सार पाना है ...
टूट गया है किस्मत का तारा
जब से तुम ने नज़रें फैरी
ज़िंदगी और जला ले हम को
ख़ाक हो कर ही सही
वैसे भी माटी के हो जाना है

saccha :)

ग़म कुछ नही होता ,
दिल कभी नही टूटता,
मोहोबबत भुलावा है ,
प्यार बस दिखावा है
जो हर पल जीत पाते हैं
सांसो पर हुकुम चलाते हैं,
जीवन मौत सचाई है ...
जो ग़म के पल ख़ुशी से जीए
उसी व्यक्ति मे चतुराई है,
नशा कभी कभी हो तो अच्छा है
जो झूठ ना बोलना चाहे पर मजबूरन झूठ बोल जाए
वो प्राणी सब से सच्चा है ... !!!

AAINAA ....

हर चहरे को आईना समझा ,
अपना अक्स टटोलना चाहा ,
शायद आईना ख़फा था,
या मेरा अक्स मुझ से जुदा था,
जब भी झाँका गहराई तक ,
अंधेरा ही पसरा पड़ा था

क्या मेरा कोई अक्स नही है ?
या चहरा आईना नही है ?

हर ग़ज़ल मे हर नज़म मे ,
ऐसे आईने के बारे मे सुना है ,
क्या ऐसा कोई आईना मेरे लिए भी बना है ?
आज अपने आईने को पहचानू भी तो कैसे //?
अपने वजूद को जानू भी को कैसे ?
मैने तो ता उम्र कोई आईना नही देखा
क्या कोई चहरा मेरा अक्स दिखाने के लिए बना है ?

Nazraana

अगर चाहत हो अपनी बर्बादी का नज़रना करने की,
अगर चाहत हो अपनी उम्र दर्द मैं डूबने की ,
अगर चाहत हो ख़ामोशी से सहते जाने की,
अगर चाहत हो ग़म की भूख बढ़ाने की ,
अगर चाहत हो हर पल नया सदमा पाने की,
तो मेरे दोस्त किसी से बेपनंहा मोहोबबत कर लेना,
फिर उसे बेवाजहा भूला देना ,
चाहतें सारी पूरी हो जाएँगी,
और तुम उसकी यादो मैं अमर हो जाओगे ,
उसकी पंहा मे जा पाओ, ना जा पाओ
पर उसकी अकरी सांसो तक "बेवफ़ा" की टार पहचाने जाओगे ,
मोहोबबत क्या देगी ? जुड़ा कर देगी
बेवफ़ा होकर तुम मर ना पाओगे ,
कुछ नया ही सिलसिला होगा,
पर कभी भुलाए न जाओगे !!!

Dulhan

वक़्त ने किस्मत का घूँघट उठाया ,
तन्हाई का फाग खिला
तन पर ग़म का जोड़ा सजाया ,
हन्थो मे परंपरा की चूड़ियाँ सजी ,
शान से माँग मैं समाज के मान का टीका सजाया ,
पैरों मे बंधनो की खनकती पायल ,
नाक मे संस्कारो का हीरा पहनाया ,
कानो के लतकते झुमके,
अब तक क्वाब पाने को झूमते हैं ,
हाय ! सब झूठा दिलासा है अब सब कुछ ,
पारी सी दुल्हन है, यॅ सब बोलते हैं ,
हर पल दुल्हन की धड़कने बोलती है ,
आरज़ू मेरी भी है कुछ ,
अब क्या बयान करूँ ख़ामोशी से ?
मेरे यॅ सातो शीरंगार मेरी बेबसी का आलम बोलते हैं !!!

sabab

जब तन्हाई मैं बैठो तो मेरा यॅ कलाम पढ़ लेना ..
सारे गमो को अपने लफ़्ज़ो तक मत लाना
छुपा कर आँसूओं को दिल मे राख लेना ,
शायद यू ही मेरी बेवफ़ाई को भूल पाओगे ..
दर्द भरे दिल को जब आँसूओं का शरबत पिलाओगे ...
जानती हूँ कभी ना कभी जान जाओगे ,
ये जुदाई , ये तन्हाई और ये बेवफ़ाई बेसबब नही है सब कुछ
शायद मेरी किस्मत का रंग तब पहचान जाओगे ...

kya milega ..

क्या मिलेगा अब और देख कर ,
ज़िंदगी एक वीराना है ,
किस्मत का रोना रोते रोते ,
ज़ख़्मो से यारी निभाना है ,
ज़ख़्म और भी क्या दे देगा
दर्द से तो अपना रिश्ता पुराना है,
हर ग़म को, हर चोट को ,
नाज़ से दिल पर खाना है,
हम मासूम समझ बैठे हैं ,
इस राह को मंज़िल का सफ़र ,
क्या मिलेगा यू भटक कर
ये तो ताना बाना है,
अपनी ही हँसी को भूल गाये हम ,
भूल भुलैया ही कुछ ऐसी है ,
दोस्ती नाते वफ़ा,
प्यार म्होब्बत सब परछाईं जैसी है ,
जहँ पड़ी रोशनी शोहर्त की
हर तरफ़ परछाईया थी अपने ही साए के जैसी ,

अब समंदर सूख गया है ,
किस्मत की तपीश ऐसी है ,
रोश्नियाँ जो खोई तो परछाईया सो गयी हैं ,
नींद से किसी को क्या जगाए ..
अब बस समय को आज़माना है ,
देखते है और क्या दिखाती है दुनिया ,
सामने पड़ा एक और ज़माना है !!!

departed !

कल उसे कोई ढूँड रहा था,
चौरस्तो गलियारों मे,
कल उसे कोई पूछ रहा था सड़को मे , बाज़ारो मे,
उस किसी ने ना बताया मक़सद उसका और क्या था ,
पर अचानक हर घड़ी पर कोई अपशकुन सा हो रहा था ,
कोई और कोई नही था , अब बारी उसकी आ गयी थी ,
और अचानक हर मुसीबत उसके सर मंडरा रही थी ..
वो आहिस्ता से गिरा और बेआवाज़ टूट गया,
एक छोटा सा ख्वाब था मेरा,
टूकड़े हज़ार हो गया ,
कल ही तो आया था जग मे ,
कल ही उसकी आ गयी थी ,
वह रे दुनिया कुछ तो छोड़ा होता
अभी तो अरमानो की दुनिया मैं सज़ा रही थी ...
ख़ुश हूँ चलो एक ख्वाब देखने से पहले ही टूट गया
वो ही हुआ जो हर वक़्त होता है ,
एक और साथी छूट गया ... !

chaahatee hoon !

आज चुपके से एक राज़ बताती हूँ ,
मेरे सपनो मे क्या आता है वो सब तुम को दिखाती हूँ ,,
यॅ सारी रोश्नियाँ और रंगत इनको मैं पाना चाहती हूँ ,
दुनिया के सारे पैसो को मैं क़दमो से रोंदना चाहती हूँ ,
सूरज चाँद सितारे सब नीलाम करवाना चाहती हूँ ,
और यॅ सारे नदिया दरिया , इनको ख़रीद के लाना चाहती हूँ ,
इस क्षितिज से उस दूर गगन तक ,
अपने फोटो लगवाना चाहती हूँ ,
और ना पूछो और क्या क्या ..
बस इस सपने मैं ज़िंदगी बिताना चाहती हूँ . !!!

hasrat ..

एक मेरा दोस्त जो मायूस तन्हाई है ,
एक मेरी यार किस्मत ,
जिसने ठोकर दर बदर की खाई है ...
आसमानो मे ना उड़े हम ,
ना कभी कोई गम हुआ ,
पर ए कुदरत क्या मुसीबत ,
चैन से लेने तो दो जो चाँद साँस मैने पाई हैं ,

मिल भी जाता और कुछ तो ,
और ज़्यादा क्या मिला था ,
एक कमी थी गम की
जो आहिस्ता घुल ही रहा था ,

खो गया है चैन सारा शायद तेरी यॅ बेवफ़ाई है ,
और अब क्या पायगे साहब , हम ने ख़ुद ही जान लूटाई है ....

jaane kyu aisa mujh se ...

जाने क्यू ऐसा मुझ से अक्सर ही हो जाता है ?
दामन मेरा आसूओं से अक्सर ही भीग जाता है ,
कभी किसी पल की तलब यू ही बढ़ सी जाती है ,
उस सिरे का पीछा करते अंधेरा ही हाथ आता है ,
जाने क्यू ऐसा मुझ से अक्सर ही होजाता है .....

Dekha !

दुनिया देखी , जहान देखा
परिन्दो की तारहा भटकते हुए ,
रोज़ नयी ज़मीन नया आसमान देखा ,
देखा ओ बहुत कुछ यंहा मगर ,
हँसते खेलते .सोचते समझते
हर पल तुम मे हम ने एक नया इंसान देखा !

megh !

तुम मेघ क्यू हो ?
पल भर को आते हो ..
मेरी ख़ुशियों को बढ़ाते हो ,
मेरे दर्द को काम करते हो ,
फिर बीन बरसे ही चले जाते हो ....

मैं सदियों तरसती रहती हूँ,
मेरी प्यास बढ़ती जाती है ,
धरती हूँ ना, तुम्हे आ कर कैसे छू लू ?

सूरज तो रोज़ आता है ,
मुझे जलाता है ...
तुम्हारी याद दिलाता है
और मेरी अगन बढ़ता है ...

मैं प्यासी तड़पति रहती हूँ,
सपनो मैं तुम्हे दूर देख
कुछ पागल सी हो चली हूँ ,

तुम मेरे मेघ हो मैं जानती हूँ,
मगर हवाओं का भरोसा नही मुझे ,
कब नयी दिशा दिखा दे तुम्हे ?
भटक ना जाना कान्ही,
सही राह चलना ,

तुम मेरे मेघ हो, मेरे ही रहना
धरती हूँ नेया बस तुम्हे याद दिलाना चाहती हूँ ,
तुम्हारी आवारगी की भी कायल हूँ मैं ,
पर जुड़ा ना हो जाना मुझ से ...

तुम आते हो,
सूरज को छिपा कर मुझे ढक देते हो ,
पल भर का ही सही साथ पसंद है मुझे तुम्हारा

सूरज क्या है ? गम है ...
तुम्हारा साया मुझ पर ख़ुशी की लहर है ,
मगर मंज़िल मेरी यू तुम्हारा साया तो नही ...

बरसो , और यू बरसो ,
मैं मस्त हो जाऊं, भीग जाऊं
खिल कर नाचू, और झूम जाऊओं
और लोग कह उठे देखो बहार आ गयी है ,...

तुम मेरे मेघ हो,
मुझे धरती होने पर गर्व है ...
नाज़ है तुम पर तुम मेघ हो
तुम्हारे होने से ही तो मैं हूँ ,

तुम मेघ ही राहना और मुझे धरती ही रहने देना

pyaar kaun paata hai ?

आँखे किसी उमीद से चमकें ,
इस से पहले यॅ भी समझ लो ,
यहा प्यार किसी को कब मिला है ?

लो, इस हवा को गहरी साँस मैं बाँध लो ,
तन्हाई की महक को अभी से महसूस कर लो ,
ता की जब यॅ तुम्हारा दरवाज़ा खटखटाए,
तब ऐसा ना लगे कोई अजनबी आया है,

ना, ना ,ना , छोड़ना मत इन सांसो को .... थामे रखना ,
प्यार की ख़ुशबों का चाढ़ता नशा उतर ना जाए कही,
सपनो मे सजी दुल्हन की माँग से लाली आँखो तक ना उतर आए

पाषण से अब तक प्यार तो कभी मशहूर ही नही था ,
मशहूर हो है जुदाई , जिसे पा कर हर प्यार अमर हो जाता है ,
एक फासना बन कर ज़बानो पर चढ़ जाता है ,

मैं कौन होती हों तुम्हे रोकने वाली ,
पर बस समझाना चाहती हों,
यंहा प्यार कौन पाता आयी ?
जो पाता है तन्हा हो जाता है ...
तन्हाइयूँ को भी आकचे से देखा है मैने ,
तन्हा हो कर कब कान्हा कौन जी पाता है ?

बोलो यंहा प्यार कौन पाता है ?
तुम ही बोलो यहा प्यार कौन पाता है ?

ahsaan ..

रोज़ की टार सूरज उठता है , फिर ढल जाता है
चाँद निकलता है और खो जाता है ,
घड़ी के काँटे चलते रहते हैं ,
टिक-टिक, टिक-टिक समय काटता जाता है ,
सड़कें आबाद होती हैं आर सुनसान भी,
यू ही कुछ ज़िंदगी भी चलती रहती है ,
हर रात आँखे इस आरज़ू मैं बंद होती हैं
अब किसी किरण की आस ना हो , आरज़ू ना हो ,
पर बेवकूफ़ साँसे थमती ही नही .....

बस एक अहसान कर दो खुदाया,
मेरी धड़कन को थाम लो,
सांसो की डोर दूर कान्ही अटका दो की फिर सुलझ ना सके,
भटकते मन को कही तो सुकून मिले,
बेहद तक गया हू रोज़ रोज़ की दुनिया से ,
अब तो जन्नत या जहन्नुम की आस भी नही रही ,
बस एक बार ऐसी नींद की तम्मना है ,
जो आँखो मे यू उतर आए ,
बस एक ऐसा क्वाब देखो जो टूटने ना पाए ...
बढ़ता जाए बढ़ता जाए और बढ़ता चला जाए ...
नावज़ टूट जाए बदन ठंडा पड़ जाए ....
सायद रो भी पड़े कोई उस पल ,
पर उन आसूओं पे मत जाना तुम ,
ले कर मेरे अक्स को कान्ही दूर फेंक आना तुम ,
जन्हा जान सकूँ यॅ बात ...
क्यू जब मार जाए कोई तो याद बहुत आता है ?
तन्हाई से बहतर यॅ जान्हन, मौत क्यू कहलाता है ?

har ghadi ...

हर घड़ी की ज़िंदगी मौत का पता बताती है ...
ए आँख तूने आज क्या देखा ..... क्यू तू आँसू बहाती है ???

Dhokha ..

जिसको जितना प्यार दोगे ,
उतनी ही ठोकर खाओगे ,
अगर किसी से वफ़ा करोगे ,
जीवन भर रोते रह जाओगे ,
आखें अपनी लाल करो,
या मजनू सी हालत कर लो ,
उतने ही बेवकूफ़ समझे जाओगे जितना ख़ून बहाओगे,
दुनिया से टकरा जाओ या घरवालो से भीड़ लो,
जिस के लिए लड़ने जाओगे उस से ही मात खाओगे ,
मैने तो इतना समझा है चलो तुम भी अब सुन लो,
अगर किसी से प्यार करोगे तो बस धोखा ही पाओगे ....

Sunday, October 21, 2007

kaise khud ko samjhaaoon ?

कैसे ख़ुद को समझाऊं ?
कैसे दूर मैं हो जाऊं ?
पास उन के जन्नत है ,
कब तलाक़ जहन्नुम को रैन बसेरा बनूँ ?
हर पल गुज़रता है उनकी हसरत मे,
ज़माना है दरमियाँ कहो कैसे पास मैं जाऊं ?
हसरत है तो बस उनकी ....
कैसे उस शक्श को पाऊं ?
क्यू मितादून हर ख़्वाहिश ?
क्यू इस दिल को तद्पाऊ ??
कोई तो होगा फ़रिश्ता जो दिखाए रास्ता उस मंज़िल का ....
जहा चैन है सकूँ है ....
प्यार है जुनून है ,
कैसे उस फ़रिश्ते से मिलूं ?
कैसे उन्हे क़रीब लाऊँ ?
अब मंज़िल हैं वो मेरी ....
कहो ना.... मंज़िल तक का सफ़र तय करूँ
या रास्ता बदल दूँ , उन से दूर चली जाऊं ???

KOI ...

ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ...
सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई,
हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से ....
मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई ,

गम मौत का नही था , जब चिराग़ जलता था वो
क्यू मेरे प्यार कू भूला रहा है कोई ,
आज दूर जा कर जुदाई बढ़ा रहा है कोई ...

मौत शर्मिंदा है , बेवक़्त आ गयी है ...
हर शाम मेरी क़ब्र पर आसूं बहा रही है ..
जिस्म खाख है .. रूह दफ़ना रहा है कोई ,
अपनी यादों से मुझे मिटा रहा है कोई ...

ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई .....

Ajeeb ...

रिश्ते होते हैं बड़े अजीब ....
कुछ मे होती है दीवानगी ...
कुछ मे होती है हया और तमीज़ ...
कुछ रिश्ते बस रिश्ते होते हैं ,
ना चाह कर भी बस निभाए जाते हैं ,
दिल मिले नेया मिले
लोग गले लगाए जाते हैं,
रिश्ते जो ना चाह कर बनाए जाते हैं
और कुछ वो भी जो अनजानो से,
सपनो मे सजाए जाते हैं ,
रिश्ते कभी तोड़ कर निभाए जाते हैं ,
उर कुछ रिश्ते जो चाह कर भी ना भलाए जाते हैं,
रिश्ते अजीब पहेली से ,
मुझे भूल भुलईया मैं घुमाए जाते हैं,
समझ , नासमझ के फेर से परेह
ज़िंदगी को कान्ही अनजाने रास्तों पर भटकाए जाते हैं !

kaun hoon ??

मैं आग हूँ हवा हूँ ,
प्र्थवि , आकाश ,धारा हूँ ....
मैं स्वयं ब्रहम तो नही शायद ...
पर पाँच तत्वो से बना हूँ ..

कोई उर्जा मुझे संचालित करती है
कोई शक्ति नयी सुबहा दिखाती है
स्पंदन हृदय का ध्वनि नाद सा,
चक्शु बंद हो ब्रहमंड घुमाती है ...

सर्वस्व समाया रखा है कान्ही इस काया मे,
देव और पिशाच हूँ ,
माया मोक्ष मैं झूलता हुआ ...
मैं एक अमर प्राण निर्विनाश हूँ !!!

मैं !!!

मैं अहम हूँ,
कभी हक़ीकत कभी वहम हूँ
किसी काया मे प्राण,
किसी अंतरिक्ष मे ग्यान,
कभी साधारण कभी गहन हूँ,
मैं अहम हूँ .
कभी स्पंदन जीवन सा ...
कभी रहस्य घनघोर बड़ा,
पहचान हूँ,स्वाभिमान हूँ,
कभी स्वार्थ कभी अभिमान हूँ,
मैं अहम हूँ
एक पहेली गूढ़ , एक वहम हूँ !!!

मायने ज़िंदगी के !

मायने ज़िंदगी के हर रोज़ बदल जाते हैं,
जिस राह पर चलतें हैं , नये मुकाम नज़र आते हैं ...
लगता है कभी दौड़ कर पूरा कर लेंगे यॅ सफ़र ...
और कभी हर डगर मील के नये पत्थर मिल जाते हैं ,

कभी समर्पित करतें है तन और मन को ....
जलते हैं आग मे सपनो की चिता की ....
और कभी भीग जाते हैं बारिश मे,
किसी नये हालात के बदल जब बरसे तो ....
हर हालात ,हर रस्म,शिद्दत से निभाते हैं
मायने ज़िंदगी के हर रोज़ बदल जाते हैं .....
ख़यालो के आसमान मे कभी ....
उमीदो के परिंदे फदफ़ड़ते हैं
कोशिश करते रहते है कुछ ना कुछ
और फिर गुमनाम से बैठ जाते हैं .....
कई बार बदली गयी है अपनी किस्मत ....
राह मे आने जाने वालो को अपनी दास्तान सुनाते हैं
समझ नही पायें हैं अब तक ... क्यू इतने तूफ़ान आते हैं ,
मायने ज़िंदगी के हर रोज़ बदल जाते हैं .....

सब्र !!

आज तुम्हारे साथ हूँ पर पास नही ...
और यॅ कसक दिल को अंदर से छू जाती है ...
कुछ लम्हो के लिए तुम्हे देख भी लेती हू तो
आग सी गर्मी से तन्हाई बर्फ़ सी पिघल जाती है ...
घबराती हूँ कान्ही खो नेया बैठू तुम्हे ...
नज़रो से दूर जब कान्ही हो जाते हो ,
क्यू सितारों की तरहा कभी ओझल से
कभी चमकते मेरी आखो के सामने
मुस्कुराते हुए इठलते हो ???

बहुत मासूम सी लगती है बातें तुम्हारी ...
हम मिल कर सब ठीक कर देंगे कहना
मेरी परेशानियो मैं शरीक होना ....
और मेरे डाट देने पर तुम्हारी आँखो का नाम होना

रोकना चाहती हूँ अपने आप को ....
जानती हूँ यॅ सही समय नही हैं
बहुत कुछ है दरमियाँ हमारे ...
पर क्या करूँ इस दिल को बस सब्र नही है !!!

my dearest expression: rishta

रिश्ता जो स्वच्छंद हो , विश्वास का हो
किसी बंधन मैं ना बाँध सके तुम्हे ,
खुल कर खिल कर निखार सके ,
लहराती मतवाली हवा और मुक्त आकाश सा हो ...

रिश्ता जो परखे तुम्हे और परख सीखाए ..
तुम्हारी सिसकियों मे सिसके और ख़ुशियों मैं खिलखिलाए ....

रिश्ता जो महज़ इत्तेफाक ना हो ,
जो नेया सोचा समझा फ़ैसला हो ...
ना ही कोई राज़, ना झूठी बात ना मज़ाक सा हो ...

रिश्ता जो ना दोस्ती का हो
ना कोई पहचान का, ना प्यार का हो ...
ना ही कोई अन्जाना सा पहलू
ना शक़ का हो ना ऐतबार का हो ....

चलो किसी ऐसे रिश्ते मैं बाँध जाए,
ना समझे इसे, ना जहान को समझाय
चलो मिल कर कोई अनाम रिश्ता निभाय !!!

woh kahtaa tha !

वो कहता था .. तुम्हारी आखो मैं मुझे प्यार नज़ार आता है ,
वो कहता था तुम्हारे साथ मुझे अपना सुखी संसार नज़र आता है ...
वो कहता था तुम मे एक नया अहसास नज़र आता है ...
झील , पटझारड़ ,बादल, बारिश , हर मौसम ख़ुशगवार नज़र आता है ...

वो कहता था और मैं सुनती रहती थी ....
लगता था मुझे मेरा घर बार नज़र आता है ....

कहता था सब अकचा होगा ,
दुनिया साथ मिल कर जीत लेंगे, सब अकचा होगा ...
तुम्हारी हसी यॅ कहती है मुझ से ..जो देखा है हम दोनो ने मिल के ...
वो सुभा कॅया सपना ज़रूर सच्चा होगा !

वो कहता है ... वक़्त बदल गया है ,
तुम और मैं दो अलग अलग शख्स हैं..
वो कहता है मैं बदल गयी हूँ ,
समझाना है उसे मुझे बहुत कुछ
चाह कर भी भी कुछ छोटी छोटी बातें मैं समझ नही रही हूँ

वो कहता है अभी और थोड़ा वक़्त लगेगा
पता नही क्या कहे ज़माना ...
पर वो कहता है वो अंत तक लड़ेगा ....
समझा ही लेगा सबको और सायद अपने आप को भी

वो कहता रहता है ...और आज भी मैं
चुपचाप मुस्कुरा कर सुनती रहती हूँ .....

वो कहता है, मैं बेलगाम घोड़े दौड़ाती हूँ,
रिश्तों की नज़ूक डोर थाम नही पाती हूँ,
वो कहता है मैं बहुत जल्दी मचाती हूँ ....
कहता है कुछ बात है जो मैं समझ नही पाती हूँ

वो कहता है इतनी जल्दी ठीक नही,
वक़्त दो मुझ को और थोड़ा होसला रखो
तुम जो टूटी , तो मैंकैसे फ़तह पाऊँगा
साथ नेया दे सकी मेरा तो मैं टूट जाऊंगा
वो कहता है अभी सब को समझाना है ....
चाहता हूँ पूरा कुटुम्ब अपनाए तुम्हे,
तभी सच्चे मान से परीवार बसाऊंगा ...
कुश रहूँगाओर तुम पर ख़ुशियाँ बरसाऊंगा

वो तो सच ही कहता है ...
पर क्या करूँ मैं ,
उसके प्यार मे लाचार बैठी हूँ ,
चाहती हूँ उसे अपनी ज़िंदगी देना
इधर उसके इंतज़ार मैं अधूरी बैठी हूँ !!!

ladki ...

महन्दी की महक , सजे हुए नाज़ुक हाथ
चूड़ियाँ और खनकती पायल ....
कुछ चीज़ो का मतलब शायद मोहोब्बत ही समभजाती है ...
सपनो मैं मुस्कुराना ,
कभी नींद मैं हँसना और खिलखिलाना ...
शायद प्यार करने से इंसान की दुनियाँ ही बदल जाती है ...
जो जानते हैं काफ़ी अर्से से मुझे ,
आज वो लोग हैरान हैं ,
कहने लगे हैं ज़ामाने वाले ... लीया लड़की भी शरमाती है !!!

Rishte ~

बड़े रोमांचक होते है यॅ रिश्ते जो ख़ून के नही होते ,
पतंग से होते है रंग बिरंगे ,.,......
आखो को भर देते हैं रांगो से ,
नज़रे टीका कर इनपर बोज़िल शामे काट जाती हैं ,
इस कला पर हाथ आज़मा लो,
हर बात बदल जाती है ......
ऐसी पतांगे उड़ाना सब के बस की बात नही ...
उड़ते उड़ते कब काट जाए पता नही लगता ,
इन बेपंख पंछीयों के काट कर गिर जाने मे आवाज़ नही होती ....

पर अगर विश्वास कॅया मंजा हो तो बात ही कुछ और है ....
शक़ से सुती हुई,तैयार प्रतिद्वंदी की डोर है .
कब ढील दो कब लपेट लो , सब वक़्त और हालात तय करते हैं,
ऐसी पतन्गो के रास्ते मौसमी हवाओ के साथ कभी कभी बदलते हैं

जीवन मैं एक बार ज़रूर कोई बड़ा दाव लगाया जाता है .....
हो जाए ज़माना चाहे दुश्मन , पर पेंच लड़ाया जाता है ...
जो टिक जाए विशम हवा मे ...
वो पतंग जीत जाती है ....
वरना सारी दुनिया चोर है ....
पतंग तो क्या , डोर भी लूट ली जाती है !!!!

kaun kahta hai ?

कौन कहता है ? जो हम देख रहे है वो सब सही होगा ,
हो सकता है आधा सच किसी बड़ी बात कॅया मुद्दाइ होगा,
कोसते रहते है जो हम नसीब को ....
हर घड़ी के साथ छोटा सा लम्हा ,
एक बड़ी बात कॅया पैगाम ,
एक हसीन ज़िंदगी की गवाही होगा ....
यॅ जो हर बात पर हम टूट जाया करते हैं ,
हो सकता है कोई छुपा राज़ .....
यॅ गम अजीब सी परछाई होगा !!!
कल जब रात को आख खुलेगी किसी सपने के दरमियाँ
हो सकता है कोई नया सवेरा नया सूरज नसीब होगा !
कन कहता है जो हम देख रहे हैं सब सही होगा ????

jung

दिल और दिमाग़ की जंग बड़ी अजीब होती है ....
खायालो और ख्वाबो की दुनिया मे भी कोई नेया कोई मजबूरी होती है ....
जो सोच समझ कर की जाए .. वो ग़लती नही नशखोरी होती है ..
हर अनजानी राह पर चलना मोब्बत के मारो की कमज़ोरी होती है ..
बदनामी से डरते रहना दिमाग़ी फ़ितूर है ...
जब हावी होता है दिल,तो हर राह मे एक मंज़िल ज़रूरी होती है ...

zaroorat ~

खुली आखो से जो देख रही हूँ ....
सपनो जैसी वो हक़ीकत ही तो है ...
इन पलको पर जो दमका करती है ..
वो चमक तेरी बेपन्ह मोहोबबत ही तो है ..
मुस्कुरा कर सर झुका लेते हो ,
सीहरे हैं कहते हुए ,
इस ज़िंदगी को बस एक चाहत ही तो है ....
आ जाओ बदल दो दुनिया मेरी ,
मेरी तन्हाइयों को बस तेरी ज़रूरत ही तो है .... !!!!

zndagee bahut tez chal gayi hai !

ज़िंदगी कुछ बहुत तेज़ चल गयी है ....
एक लम्हे मे ना जाने कितने जानम जिए ....
यू लगा जहानुम की फ़िज़ा बदल गयी है
ज़िंदगी बहुत तेज़ चल गयी है ....
एक चिराग़ यू टिमटिमया डगर मे ,
हँस कर कहा किस्मत ने ... मेरी मंज़िल बदल गयी है
ज़िंदगी बहुत तेज़ चल गयी है ....
कौन कहता है हम मुस्कुराना नही जानते हैं ?
पलट कर देखे ज़माना .. मेरी सूरत बदल गयी है ...
ज़िंदगी बहुत तेज़ चल गयी है ....
हल्की सर्दी सी महसूस होती है ज़हन मे
क्या ग़ज़ब है तेरा ख़याल .... की कुदरत बदल गयी है ...
ज़िंदगी बहुत तेज़ चल गयी है ....
जाओ छुपा कर देख लो ख़ुद को कही भी ....
मिल ही जाऊंगी मैं वन्हा जन्हा तुम होगे ..
तेरा साथ मिला करे हर मुकाम पर ,
चाहते ,आरज़ू,हक़ीकत हर तस्वीर बदल गयी है ...
ज़िंदगी बहुत तेज़ चल गयी है ....

kaise ?

शब्दो की दहलीज़ पर आ कर खड़ें हैं ,
तेरी दीवानगी मे क्या नशा है समझाए कैसे .....???
इन मासूम निगाहो से जब देखते हो .....
पिघल जाता है हमारा दिल , कहो बचाए कैसे ???
ख़ामोश रहते हो तो सारे राज़ खोल देते हो ....
तुम्हारी इन आगाओ से बच पाय कैसे ??
एक बार मुस्कुरा कर हमारा सब कुछ तुम ने अपना लिया .........
इतने ख़तरनाक इरादे , तौब !
कहो तुम से उगलवाए कैसे ???

Tanhaai ...

याद करती हूँ तुझे हर पल ....
क्यू हर रोज़ ये शाम आती है ???
सपने तो आकर गुज़र जातें हैं ,
क्या नींद मेरे काम आती है ???

हर वक़्त यही सोचते गुज़र जाता है ....
ये रात क्यू बदनाम आती है ?
तुम सायद आना ना चाहो ....
पर हर बात मे तेरी बात आती है !

my difinition of ZINDAGEE ....

ज़रा, कतरा और जां सी ज़िंदगी ...
कभी सुभहा कभी शाम सी ज़िंदगी ....
कभी कशमकश कभी आराम ,
कभी चाहत कभी नाकाम सी ज़िंदगी ....
हर रांग मैं डूबी डूबी सी ....
कभी बेमतलब, बेनाम सी ज़िंदगी ...
हर वक़्त लगा रहता है लेना देना ,
कुशी का आटा गम का चावल पुरान,
बानीए की छोटी दुकान सी ज़िंदगी
कभी नाम, कभी पहचान ...
कभी मंज़िल ,कभी मुकाम सी ज़िंदगी ....
हर शय मे देती है जीने की सौगात ...
हर पल आती मौत का पैगाम सी ज़िंदगी !!!!

Tum ...

तुम मेरी ज़िंदगी मैं .... सबक नही , हादसा नही , एक अहसास बन कर रहोगे ..
अपनी चाहत की कायल नही मैं , तुम हर लम्हा नया फासना बनकर रहोगे ...
शान और तोहीन के मायने बदला करें , खुदा का बक्श हुआ अहसान बन कर रहोगे ...
अनजान बानो तो बना करो .... तमन्ना जगाने वाले,
सब की नज़रो मैं गुमनाम बन कर रहोगे ......

ज़िंदगी तुम से है .... तुम पर टिकी रहेगी ...
ज़हन मे मेरे , भगवान बन कर रहोगे ....
तुम्हारी दी हुई तन्हाईयो और बुराइयों का गिला नही मुझे ....
इस अडिग विश्वास के पीछे जो नाम छुपा है ...
इस नाम , इस रूप का विस्तार तुम रहोगे !!!!

arzoo ...

चाहत थी तुम्हे पाने की ...
स तो पूरी हो गयी ,
अब आरज़ू है साथ निभाने की...
तो क्यू तुम मुकरते हो ??
जब तलाक़ मेरे साथ जी ...
दुनिया हसीन लगती थी तुम को,
आज जब लोग पूछते हैं .... तो क्यू मेरी बदनामियो से डरते हो ?
क़दम जो उठाए हैं हमने .. उसे बहकावे का नाम ना दिया करो,
मुझे बदल कर बदलने वेल ... क्यू इस दुनिया से डरते हो ?
साथ दो मेरा .. मैं तकदीर बदल सकती हूँ ,
जानते हो यॅ तुम भी ... फिर दूर मुझे क्यू करते हो ??
हाथ पकड़ो मेरा . देखो मौसम बदलेगा ...
मेरी आरज़ू मेरे वाज़ूद से , तुम क्यू तौब करते हो ???

kyu ?

इन पलको के पार देखो ,
इन आसूओ मैं छुपे दर्द को समझो ..
दिल मैं रखे जज़्बात टतॉलो ,
सायद तब समझ सको तुम ,
क्यू हम तुम पर जान निसार करतें हैं !

अपनी अदाओं से रूबरू हो जाओ ...
अपने सम्मोहन को तोलो ,
अपनी कायल कर देने वाली आवाज़ को सुनो ...
सायद तब समझ सको तुम
क्यू हम तुम्हे इतना प्यार करते हैं ....
जान ले कर मेरी परख सकते हो मुझे ....
ज़माने मैं तुम से सॅचा कुछ नही है ,
हम तुम पर ऐतबार करते हैं !!!!

Fitrat ...

ज़िंदगी प्यार की छोटी होते है ,
चाहे कितनी गहरी हो दीवानगी ...
मंज़िल तक पहुच जाए ,
यॅ ख़्वाहिश सब की कान्हा पूरी होती है ???
हर मुकाम पा लेंगे किस्मत मई लिखा है ....
पर हर राह मैं कोई अनदेखी मजबूरी होते है !!!
जूझते रहते है ता उम्र फिर भी ...
कोई नेया कोई चाहत अधूरी रहती है ...
स्पने भी कभी कभी पुर हो जाते हैं ..
नया ख्वाब सजाने की फ़ितरत भी ज़रूरी होती है ...

baawali takdeer... !

ए बावाली तकदीर ...
क्यू ले चली फिर उसी डगर को ?
जन्हा से कौत कर आए हैं.
आँखे नाम और दिल पर घाव ....
बड़ी मुश्किल से जान बचा पाये हैं
ए बावली तकदीर ..
क्यू सजाती है फिर से रंगी सपने ??
अभी तो ज़ेहन जला कर आए हैं
बड़ी मुश्किल से वो बीता वक़्त भुला पाये हैं ..

Mushkil hota hai !

खोए हुए को वापस लाना ...
बेरहम पैर विश्वास करना ....
दिल तोड़ने वेल से प्यार पाना ... बड़ा मुश्किल होता है !!!

सपनो भारी आखो मे नींद रखना ...
और नाम आकनो से मोती चुराना .. बड़ा मुश्किल होता है !!!

बंद कमरो मे खिड़कियाँ लगाना ...
गुज़ारा वक़्त वापस लाना .. बड़ा मुश्किल होता है !!!

तुम्हे इल्म नही होगा ....
पर ..हो तन्हाई तो तुम्हे भूलना ....बड़ा मुश्किल होता है !!!

वो तुम्हारा ही घर है ... यॅ सब जानते हैं.,
इन चन्द क़दमो का फ़ासला मिटाना ...
हम से पूछो ............... बड़ा मुश्किल होता है !!!

Bhool gaya ...

हाथ मे तकदीर की लकीर दे दी,
पैर सायद खुदा मेरा नज़ीब लिखना भूल गया ...
ज़िंदगी के काग़ज़ पैर कुछ लकीर खीच तो दी .....
पैर इस तस्वीर मे .. रंग देना भूल गया ,
भूल गया , मुझे भी एक इंसान बनाया गया है ...
फिर मेरे अरमानो को क्यू अंजाम देना भूल गया ?
हसना सीखा दिया अपने हाल पैर ....
एक सुकून भारी मंद मुस्कान देना भूल गया ....
भूल गया मेरे भी कुछ सपने है, चाहते हैं ,
दोहरी दुनिया की इस अजब मझदार मे छोड़ दिया
क्यू कश्ती और पत्वार देना भूल गया ?

manzil ....

ख़ुद पैर ऐतबार था .... और खुदा पैर यक़ीन ,
निकल चले अनजानी रहो पैर अपनी मंज़िल तलाशते ..
कई मोड़ आए , ठोकरे लगी ...
कई बार फिसले और गिरते गिरते बचे ,
कुछ मील के पत्तर गाड़े,
तो कान्ही रास्ते की खाख छानी,
कभी लगा सब हार गाये,
और कभी चाँद ख़ुशियाँ हाट लगी ....
मतवाले से चलते रहे ... सायद चलते रहना ही तकदीर थी ...
मंज़िल राह देख रही होगी यॅ अहसास होता है ...
यॅ सफ़र बस पूरा हो चला है , यॅ आभास होता है ....
वो मंज़र भी क़रीब है .. जिसके ख्वाब सजायें हैं ,
पा ही लेंगे उस मुकाम को ...
एक नाम को ... अपनी पहचान को
आज यॅ तय कर के आए हैं !!!!

manzil !

इस मंज़र पैर सब कुछ है .....
आस , उमीड़ और आरज़ू ....
देख सकतें हैं मनज़ी को ...
सामने स्थिर खड़ी हुई है !!

नेया जाने ये किस्मत है ..
या कोई दुआ काम आई है ....
हम तो बस चलते रहे बेख़बर ....
मेरी नासमझी मेरा मुकाम लाई है !!!

यन्हा से रास्ते सीधे मेरी मंज़िल को जाते हैं ...
पैर कुछ ख़याल अतीत के ,
एक सरण पैदा करते है..
दिल को सायद बेवजह डराते हैं ..... !!!!

Ajeeb saa ....

ये फासाना बड़ा अजीब सा ....
गुम पुराना बड़ा अजीब सा ...
नयी मोहोबबत रंगीन बसंत सी .....
और टूटे दिल का पत्झर हर बार आना बड़ा अजीब सा ....

ख़्वाहिशो की बारिश और ज़खम हरा भरा ....
इस काली बदरी का आना बड़ा अजीब सा ...
सूख चुका इस दिल का समंदर ,
और नयनो की नदियों कॅया बहते जाना बड़ा अजीब सा ...
गुम पुराना बड़ा अजीब सा ...
यॅ फासाना बड़ा अजीब सा ...
सारी उमीड़ डूब चुकी है इसमे ..
ख़ाली नही होता " ज़िंदगी कॅया पैमाना " बड़ा अजीब सा!!!!

nijaat ...

एय कशमकश भारी ज़िंदगी .. तेरा सार क्या होगा ?
टूटे दिल के ज़ख़्म तो वक़्त ने भर दिए ...
उन दर्द भारी यादो का निजात क्या होगा ?
हम तो हर चोट सह गाये अपना मुक़द्दर समझ ...
अब ख़ुशनसीबी पैर ऐतबार कैसे होगा ??
इंसान ने इंसान से जब छीन ली ज़िंदगी
ऐसी इंसानियत पैर विश्वास कैसे होगा ??
ह्र पल मार मार कर जब काट ही ली है सारी ज़िंदगी ...
अब और बताओ खुदा मौत का इंतज़ार कैसे होगा ??

jaane kyu ?

क्या भला था ? क्या बुरा ... सोचा नही कभी , निकल पड़े एक सफ़र पैर .. डगर डगर भटकते रहे , कई साथी कुछ पल के हम सफ़र हुए .. पैर क्या मंज़िल थी पता नही , बस चलते रहे ! बार बार ठोकर लगी ...चलती हवाओं से पत्ता पूछते, बिखरे पत्तरो से बतीयाते चल पड़े एक अजीब सफ़र पैर! एक धुन सी थी , सनक सवार थी बस चलते जाने की .. जब पता पड़ा कोई दो रहा तिराहा आया , नाम लिया प्रभु का और एक मोड़ छोड़ कर दूसरे के हो लिए .... तब से अब तक निरंतर चल रहे हैं .. पता नही क्या भला है क्या बुरा है ... बस चले जेया रहे है, लगता है कोई मंज़िल तो आएगी .... ! लगता है कभी कभी की फ़स गाये हैं किसी भूल भुलईया मे ... छूटे मोड़ पुकार रहे हैं, घूम फिर कर वही रास्ते बार बार आ रहे हैं ... जाने क्या होगा अगले रास्ते , फिर भी ना जाने क्यू हर मोड़ जा कर किस्मत आज़मा रहे हैं !!!

Tohmat ...

एक तोहमत और आज हम पैर लगाई जा रही है ....
बुझ सी गयी थी जो आग .... फिर भड़काई जा रही है !

ज्वालामुखी सा अतीत मेरा , ल्यूक देर पहले फट चुका है ..
अब थाम चुका है सैलाब भी...
अब तलाक़ इज़्ज़त हमारी क्यू उछाली जा रही है ?
एज़मीन अब तलाक़ जो बंज़ार थी ..
अब तो हरियाली छाने को है ..
क्यू जड़ो मे खाद नही .... तेज़ाब मिलाई जा रही है ?
बारिश की हमे आस है खुदा .....
क्यू ये हवा सारे काले बदल उड़ाए ले जा रही है ?

क्या हक़ नही मुझ को पनपने का ? बढ़ने का ?
सितारा बन लोगो को राह दिखाने का ?
ज़माने के आसमान मे चमकने का ??
फिर क्यू हर निगाह मुझे पतन का रास्ता दिखा रही है ?
कोई तो बताए .. हम कहा ग़लत थे ?
जो समर्पण ग़लतियाँ कह कर गिनाई जा रही है .... !

अगर यही है मेरा अंत तो सुन ले खुदाया .....
इस दुनिया से आछाई मिटाई जा रही है !!!




Type below: kya kar rahe hain aap↓ क्या कर रहे हैं आप?↑

kaash

काश तुम समझ सकते इस दिल मैं क्या चुभा है ....
बेमतलब नही है यॅ बारिश , आसमान यू ही नही बहा है
मिट्टी की सोंडी सोँधी महक ... अब कोई तमन्ना नही जगाती है ...
चाँद और चाँदनी भी नया ख़वाब नही सजाती है !!
काश तुम समझ सकते .. क्यू हूँने छत पैर जाना छोड़ दिया,
काश तुम समझ सकते क्यू तुम्हे भुलाना छोड़ दिया !

आज तेरी दुनिया मैं नयी बहारें होंगी ...
नये रंग, नये गुल , नयी फ़िज़ाए होगी ...
पैर मेरी ज़िंदगी मैं आज भी यॅ मंज़र है,
तेरे दर की उस दीवार के बाद ....
मैने सर झुकाना छोड़ दिया !!!

मैं तदप करूँगा तेरे याद मैं, जाना
चाहे तूने मुझे अपने सपनो मैं बुलाना छोड़ दिया ...
यॅ घर छोड़ दिया, शहर छोड़ दिया .. और ठिकाना छोड़ दिया !
आते जाते रहते हो तुम तो .... क्यू मुझे बुलाना छोड़ दिया ?

काश तुम समझ सकते ...... तुम्हारे बाद मैने प्यार निभाना छोड़ दिया !!!

kabhi kabhi ...

कभी कभी कोई मंज़र ऐसा भी आ जाता है
दिल तो क़रीब होते हैं ज़माना दरमियाँ आ जाता है
हम किस्मत को कोसते रहते है ...
वक़्त गुज़ार दिया जाता है
नेया चाहते हुए भी पाक रिश्तों को ...
बेसबब भुला दिया जाता है !!!
किस किस को क्या समझायें
बेगानो मैं दम है कहाँ कुछ सुनने का
यहा रिवाज़ है कुछ अजीब सा
हर अपना हम पैर उंगलीया उठता है
कभी कभी कोई मंज़र ऐसा भी आजाता है
संभाल संभाल कर गिरे हैं
ऐसा वक़्त भी खुदा दिखता है
सुना है दुनिया मैं बहुत कुछ होता है ...
जादुई अल्फ़ाज़ हैं दो "वक़्त और दुनिया "
अजब सी तसल्ली से दिल बहला दिया जाता है
आँखे मूँद कर देख लेते है बहुत दूर तक .....
ऐसा भी पहलू आता है ..
फिर भी कभी कभी .. कोई अजब सा मंज़र आ जाता है .... !

woh ...

रात नींद मैं एक अशक़ फिर झील किनारे निकला
कौन जाने क्या सबब ? क्यू दिल पसीज़ा मान मचला
कोई ज़खम तो अब भी होगा ...
यू ही नही आ हुई ,
माना वो ख़ामोश रहे और दुनिया बर्बाद हुई ....
दोस्ती ,यारी वफ़ा सब बेनकाब हुई !
रंगो मे घुला विश्वास बह गया ...
कोई मोहोबबत फिर बेनकाब हुई ... !
तुम ही गुनाहगार होगे .. कुछ नेया कुछ तो बुरा किया
या खुदा ये क्या हुआ ? जब जब सजदे मैं बैठे
क्यू उसी ने वार किया ?

Zindgee

ज़िंदगी कुछ थाम गयी है...
हस्रतें हताश हैं ,
मायूसी का समा सारा,
चाहतें निराश हैं !
लगता है नहर ख़ुशहाली की ....
बहते बहते थाम गयी है ,
ज़िंदगी कुछ थाम गयी है !
वक़्त तो आता जाता है ....
सूरज घबराया अपनी निरंतर चाल से ,
हवा भटकते हुए परेशान हो,
मचल रही है तूफ़ान को !
पत्ते हिलते हिलते गिर गाये ...
शाम की धूप वापसी के रास्ते टहल रही है ...
ज़िंदगी कुछ थाम गयी है !
उकता गाये हैं हर रोज़ की भाग दौड़ से ....
गति इतनी है की लगता है दुनिया भी कुछ थाम गयी है !
ख़ुदकुशी कर ली सपनो ने ..
लहू बहता है और नावज़ जाम गयी है ...
ज़िंगड़ी कुछ थाम गयी है !!

Aabhas

अंतरात्मा     का  द्वंद  शांत  नहीं  होता। स्थिरता  और  ठहराव  में  शायद  ज़मीन  आसमान  का अंतर  होता  है।जीवन  स्थिर  हो  भी  जाए  तो , च...