Sunday, October 21, 2007

jaane kyu ?

क्या भला था ? क्या बुरा ... सोचा नही कभी , निकल पड़े एक सफ़र पैर .. डगर डगर भटकते रहे , कई साथी कुछ पल के हम सफ़र हुए .. पैर क्या मंज़िल थी पता नही , बस चलते रहे ! बार बार ठोकर लगी ...चलती हवाओं से पत्ता पूछते, बिखरे पत्तरो से बतीयाते चल पड़े एक अजीब सफ़र पैर! एक धुन सी थी , सनक सवार थी बस चलते जाने की .. जब पता पड़ा कोई दो रहा तिराहा आया , नाम लिया प्रभु का और एक मोड़ छोड़ कर दूसरे के हो लिए .... तब से अब तक निरंतर चल रहे हैं .. पता नही क्या भला है क्या बुरा है ... बस चले जेया रहे है, लगता है कोई मंज़िल तो आएगी .... ! लगता है कभी कभी की फ़स गाये हैं किसी भूल भुलईया मे ... छूटे मोड़ पुकार रहे हैं, घूम फिर कर वही रास्ते बार बार आ रहे हैं ... जाने क्या होगा अगले रास्ते , फिर भी ना जाने क्यू हर मोड़ जा कर किस्मत आज़मा रहे हैं !!!

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Aabhas

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