हाथ मे तकदीर की लकीर दे दी,
पैर सायद खुदा मेरा नज़ीब लिखना भूल गया ...
ज़िंदगी के काग़ज़ पैर कुछ लकीर खीच तो दी .....
पैर इस तस्वीर मे .. रंग देना भूल गया ,
भूल गया , मुझे भी एक इंसान बनाया गया है ...
फिर मेरे अरमानो को क्यू अंजाम देना भूल गया ?
हसना सीखा दिया अपने हाल पैर ....
एक सुकून भारी मंद मुस्कान देना भूल गया ....
भूल गया मेरे भी कुछ सपने है, चाहते हैं ,
दोहरी दुनिया की इस अजब मझदार मे छोड़ दिया
क्यू कश्ती और पत्वार देना भूल गया ?
Sunday, October 21, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Aabhas
अंतरात्मा का द्वंद शांत नहीं होता। स्थिरता और ठहराव में शायद ज़मीन आसमान का अंतर होता है।जीवन स्थिर हो भी जाए तो , च...
-
ज़रा, कतरा और जां सी ज़िंदगी ... कभी सुभहा कभी शाम सी ज़िंदगी .... कभी कशमकश कभी आराम , कभी चाहत कभी नाकाम सी ज़िंदगी .... हर रांग मैं डू...
-
ज़िंदगी प्यार की छोटी होते है , चाहे कितनी गहरी हो दीवानगी ... मंज़िल तक पहुच जाए , यॅ ख़्वाहिश सब की कान्हा पूरी होती है ??? हर मुकाम प...
-
ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ... सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई, हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से .... मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई , ...
No comments:
Post a Comment