Sunday, October 21, 2007

Tohmat ...

एक तोहमत और आज हम पैर लगाई जा रही है ....
बुझ सी गयी थी जो आग .... फिर भड़काई जा रही है !

ज्वालामुखी सा अतीत मेरा , ल्यूक देर पहले फट चुका है ..
अब थाम चुका है सैलाब भी...
अब तलाक़ इज़्ज़त हमारी क्यू उछाली जा रही है ?
एज़मीन अब तलाक़ जो बंज़ार थी ..
अब तो हरियाली छाने को है ..
क्यू जड़ो मे खाद नही .... तेज़ाब मिलाई जा रही है ?
बारिश की हमे आस है खुदा .....
क्यू ये हवा सारे काले बदल उड़ाए ले जा रही है ?

क्या हक़ नही मुझ को पनपने का ? बढ़ने का ?
सितारा बन लोगो को राह दिखाने का ?
ज़माने के आसमान मे चमकने का ??
फिर क्यू हर निगाह मुझे पतन का रास्ता दिखा रही है ?
कोई तो बताए .. हम कहा ग़लत थे ?
जो समर्पण ग़लतियाँ कह कर गिनाई जा रही है .... !

अगर यही है मेरा अंत तो सुन ले खुदाया .....
इस दुनिया से आछाई मिटाई जा रही है !!!




Type below: kya kar rahe hain aap↓ क्या कर रहे हैं आप?↑

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