इस मंज़र पैर सब कुछ है .....
आस , उमीड़ और आरज़ू ....
देख सकतें हैं मनज़ी को ...
सामने स्थिर खड़ी हुई है !!
नेया जाने ये किस्मत है ..
या कोई दुआ काम आई है ....
हम तो बस चलते रहे बेख़बर ....
मेरी नासमझी मेरा मुकाम लाई है !!!
यन्हा से रास्ते सीधे मेरी मंज़िल को जाते हैं ...
पैर कुछ ख़याल अतीत के ,
एक सरण पैदा करते है..
दिल को सायद बेवजह डराते हैं ..... !!!!
Sunday, October 21, 2007
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Aabhas
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