Sunday, October 21, 2007

manzil !

इस मंज़र पैर सब कुछ है .....
आस , उमीड़ और आरज़ू ....
देख सकतें हैं मनज़ी को ...
सामने स्थिर खड़ी हुई है !!

नेया जाने ये किस्मत है ..
या कोई दुआ काम आई है ....
हम तो बस चलते रहे बेख़बर ....
मेरी नासमझी मेरा मुकाम लाई है !!!

यन्हा से रास्ते सीधे मेरी मंज़िल को जाते हैं ...
पैर कुछ ख़याल अतीत के ,
एक सरण पैदा करते है..
दिल को सायद बेवजह डराते हैं ..... !!!!

No comments:

Aabhas

अंतरात्मा     का  द्वंद  शांत  नहीं  होता। स्थिरता  और  ठहराव  में  शायद  ज़मीन  आसमान  का अंतर  होता  है।जीवन  स्थिर  हो  भी  जाए  तो , च...