आज तुम्हारे साथ हूँ पर पास नही ...
और यॅ कसक दिल को अंदर से छू जाती है ...
कुछ लम्हो के लिए तुम्हे देख भी लेती हू तो
आग सी गर्मी से तन्हाई बर्फ़ सी पिघल जाती है ...
घबराती हूँ कान्ही खो नेया बैठू तुम्हे ...
नज़रो से दूर जब कान्ही हो जाते हो ,
क्यू सितारों की तरहा कभी ओझल से
कभी चमकते मेरी आखो के सामने
मुस्कुराते हुए इठलते हो ???
बहुत मासूम सी लगती है बातें तुम्हारी ...
हम मिल कर सब ठीक कर देंगे कहना
मेरी परेशानियो मैं शरीक होना ....
और मेरे डाट देने पर तुम्हारी आँखो का नाम होना
रोकना चाहती हूँ अपने आप को ....
जानती हूँ यॅ सही समय नही हैं
बहुत कुछ है दरमियाँ हमारे ...
पर क्या करूँ इस दिल को बस सब्र नही है !!!
Sunday, October 21, 2007
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Aabhas
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