चाँद उगाता हुआ, सूरज ढलता हुआ,
कुछ टूटे रिश्तो की डोर,
और यॅ मोम का दिल हवा मे घुलता हुआ,
धूप का आँचल खो गया,
सायों के हवाले यॅ आसमान हो गया
आँख खुली रह गयी,
सितारे चमके मेरी बदनासीबी पर हँसते हुए,
और मेरा ज़मीर रोता हुआ,
हम अकेले रह गाये,
और ज़माना हमे ताकता हुआ,
क्या थे क्या हैं पता नही,
पर उस शक्ष से पूछो,
जो कभी मुड़ा नही मेरी तरफ़....
और हर रास्ता मुड़ता हुआ
Monday, October 22, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Aabhas
अंतरात्मा का द्वंद शांत नहीं होता। स्थिरता और ठहराव में शायद ज़मीन आसमान का अंतर होता है।जीवन स्थिर हो भी जाए तो , च...
-
ज़रा, कतरा और जां सी ज़िंदगी ... कभी सुभहा कभी शाम सी ज़िंदगी .... कभी कशमकश कभी आराम , कभी चाहत कभी नाकाम सी ज़िंदगी .... हर रांग मैं डू...
-
ज़िंदगी प्यार की छोटी होते है , चाहे कितनी गहरी हो दीवानगी ... मंज़िल तक पहुच जाए , यॅ ख़्वाहिश सब की कान्हा पूरी होती है ??? हर मुकाम प...
-
ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ... सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई, हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से .... मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई , ...
No comments:
Post a Comment