Sunday, October 21, 2007

KOI ...

ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ...
सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई,
हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से ....
मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई ,

गम मौत का नही था , जब चिराग़ जलता था वो
क्यू मेरे प्यार कू भूला रहा है कोई ,
आज दूर जा कर जुदाई बढ़ा रहा है कोई ...

मौत शर्मिंदा है , बेवक़्त आ गयी है ...
हर शाम मेरी क़ब्र पर आसूं बहा रही है ..
जिस्म खाख है .. रूह दफ़ना रहा है कोई ,
अपनी यादों से मुझे मिटा रहा है कोई ...

ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई .....

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