Sunday, October 21, 2007

woh kahtaa tha !

वो कहता था .. तुम्हारी आखो मैं मुझे प्यार नज़ार आता है ,
वो कहता था तुम्हारे साथ मुझे अपना सुखी संसार नज़र आता है ...
वो कहता था तुम मे एक नया अहसास नज़र आता है ...
झील , पटझारड़ ,बादल, बारिश , हर मौसम ख़ुशगवार नज़र आता है ...

वो कहता था और मैं सुनती रहती थी ....
लगता था मुझे मेरा घर बार नज़र आता है ....

कहता था सब अकचा होगा ,
दुनिया साथ मिल कर जीत लेंगे, सब अकचा होगा ...
तुम्हारी हसी यॅ कहती है मुझ से ..जो देखा है हम दोनो ने मिल के ...
वो सुभा कॅया सपना ज़रूर सच्चा होगा !

वो कहता है ... वक़्त बदल गया है ,
तुम और मैं दो अलग अलग शख्स हैं..
वो कहता है मैं बदल गयी हूँ ,
समझाना है उसे मुझे बहुत कुछ
चाह कर भी भी कुछ छोटी छोटी बातें मैं समझ नही रही हूँ

वो कहता है अभी और थोड़ा वक़्त लगेगा
पता नही क्या कहे ज़माना ...
पर वो कहता है वो अंत तक लड़ेगा ....
समझा ही लेगा सबको और सायद अपने आप को भी

वो कहता रहता है ...और आज भी मैं
चुपचाप मुस्कुरा कर सुनती रहती हूँ .....

वो कहता है, मैं बेलगाम घोड़े दौड़ाती हूँ,
रिश्तों की नज़ूक डोर थाम नही पाती हूँ,
वो कहता है मैं बहुत जल्दी मचाती हूँ ....
कहता है कुछ बात है जो मैं समझ नही पाती हूँ

वो कहता है इतनी जल्दी ठीक नही,
वक़्त दो मुझ को और थोड़ा होसला रखो
तुम जो टूटी , तो मैंकैसे फ़तह पाऊँगा
साथ नेया दे सकी मेरा तो मैं टूट जाऊंगा
वो कहता है अभी सब को समझाना है ....
चाहता हूँ पूरा कुटुम्ब अपनाए तुम्हे,
तभी सच्चे मान से परीवार बसाऊंगा ...
कुश रहूँगाओर तुम पर ख़ुशियाँ बरसाऊंगा

वो तो सच ही कहता है ...
पर क्या करूँ मैं ,
उसके प्यार मे लाचार बैठी हूँ ,
चाहती हूँ उसे अपनी ज़िंदगी देना
इधर उसके इंतज़ार मैं अधूरी बैठी हूँ !!!

No comments:

Aabhas

अंतरात्मा     का  द्वंद  शांत  नहीं  होता। स्थिरता  और  ठहराव  में  शायद  ज़मीन  आसमान  का अंतर  होता  है।जीवन  स्थिर  हो  भी  जाए  तो , च...