खुली आखो से जो देख रही हूँ ....
सपनो जैसी वो हक़ीकत ही तो है ...
इन पलको पर जो दमका करती है ..
वो चमक तेरी बेपन्ह मोहोबबत ही तो है ..
मुस्कुरा कर सर झुका लेते हो ,
सीहरे हैं कहते हुए ,
इस ज़िंदगी को बस एक चाहत ही तो है ....
आ जाओ बदल दो दुनिया मेरी ,
मेरी तन्हाइयों को बस तेरी ज़रूरत ही तो है .... !!!!
Sunday, October 21, 2007
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Aabhas
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