1) ज़िंदगी मेरी आबाद ही कब थी ,
जो बर्बाड़ियों का नाम लेते हो,
हम तो पहले से ही मारे माराए हैं ,
क्यू मौत के आने का पैगाम देते हो ?
देना है तो कुछ सुकून दे जाओं ,
क्यू हमारे सर सारे इल्ज़ाम देते हो ?
2) एक कहानी हम ने भी तो थी लिखी
चाँद पुर्ज़ो मे कभी ...
हवा चली कुछ ऐसी
लेखनीयों का पता ठिकाना ना रहा ,
हर किसी ने हुमिं बेवफ़ा समझा
ऐतबार कर सके हम पर कोई
ऐसा कोई हमारा ना रहा
Monday, October 22, 2007
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Aabhas
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