Monday, October 22, 2007

Dulhan

वक़्त ने किस्मत का घूँघट उठाया ,
तन्हाई का फाग खिला
तन पर ग़म का जोड़ा सजाया ,
हन्थो मे परंपरा की चूड़ियाँ सजी ,
शान से माँग मैं समाज के मान का टीका सजाया ,
पैरों मे बंधनो की खनकती पायल ,
नाक मे संस्कारो का हीरा पहनाया ,
कानो के लतकते झुमके,
अब तक क्वाब पाने को झूमते हैं ,
हाय ! सब झूठा दिलासा है अब सब कुछ ,
पारी सी दुल्हन है, यॅ सब बोलते हैं ,
हर पल दुल्हन की धड़कने बोलती है ,
आरज़ू मेरी भी है कुछ ,
अब क्या बयान करूँ ख़ामोशी से ?
मेरे यॅ सातो शीरंगार मेरी बेबसी का आलम बोलते हैं !!!

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