वक़्त ने किस्मत का घूँघट उठाया ,
तन्हाई का फाग खिला
तन पर ग़म का जोड़ा सजाया ,
हन्थो मे परंपरा की चूड़ियाँ सजी ,
शान से माँग मैं समाज के मान का टीका सजाया ,
पैरों मे बंधनो की खनकती पायल ,
नाक मे संस्कारो का हीरा पहनाया ,
कानो के लतकते झुमके,
अब तक क्वाब पाने को झूमते हैं ,
हाय ! सब झूठा दिलासा है अब सब कुछ ,
पारी सी दुल्हन है, यॅ सब बोलते हैं ,
हर पल दुल्हन की धड़कने बोलती है ,
आरज़ू मेरी भी है कुछ ,
अब क्या बयान करूँ ख़ामोशी से ?
मेरे यॅ सातो शीरंगार मेरी बेबसी का आलम बोलते हैं !!!
Monday, October 22, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Aabhas
अंतरात्मा का द्वंद शांत नहीं होता। स्थिरता और ठहराव में शायद ज़मीन आसमान का अंतर होता है।जीवन स्थिर हो भी जाए तो , च...
-
ज़रा, कतरा और जां सी ज़िंदगी ... कभी सुभहा कभी शाम सी ज़िंदगी .... कभी कशमकश कभी आराम , कभी चाहत कभी नाकाम सी ज़िंदगी .... हर रांग मैं डू...
-
ज़िंदगी प्यार की छोटी होते है , चाहे कितनी गहरी हो दीवानगी ... मंज़िल तक पहुच जाए , यॅ ख़्वाहिश सब की कान्हा पूरी होती है ??? हर मुकाम प...
-
ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ... सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई, हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से .... मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई , ...
No comments:
Post a Comment