एक रात तन्हाई मे ,
नज़र गयी उस जन्हा तक ,
जन्हा हर तन्हा, तन्हा हो कर टिमटिमाता है
राह भटको को रास्ता दिखता है ,
वीराना ही सही तारा है वो ,
सुने अस्समान को जगमगाता है,
समझ पड़ा मुझे तब ऐसा ,
यही सितारो का नाता है ...
हर कोई तन्हा वीराना
हर पल एक दूजे को आस बंधाता है ,
और जब अकेलेपन से उब जाता है टूट जाता है ...
पर सोचो उस चाँद का क्या ?
ख़ूबसूरती की मिसाल तो कहलाता है ,
पर शायद सितारों की भीड़ मैं घबराता है,
फिर भी सदियों से कुछ उमीद पर जी रहा है ,
मिलना होगा धरती से कभी
इस आस मे जड़ हो कर भी
रोज़ एक नये रूप मे लुभाने को आ जाता है !
Monday, October 22, 2007
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Aabhas
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