Monday, October 22, 2007

Tanha kaun ?

एक रात तन्हाई मे ,
नज़र गयी उस जन्हा तक ,
जन्हा हर तन्हा, तन्हा हो कर टिमटिमाता है
राह भटको को रास्ता दिखता है ,

वीराना ही सही तारा है वो ,
सुने अस्समान को जगमगाता है,
समझ पड़ा मुझे तब ऐसा ,
यही सितारो का नाता है ...
हर कोई तन्हा वीराना
हर पल एक दूजे को आस बंधाता है ,
और जब अकेलेपन से उब जाता है टूट जाता है ...
पर सोचो उस चाँद का क्या ?
ख़ूबसूरती की मिसाल तो कहलाता है ,
पर शायद सितारों की भीड़ मैं घबराता है,
फिर भी सदियों से कुछ उमीद पर जी रहा है ,
मिलना होगा धरती से कभी
इस आस मे जड़ हो कर भी
रोज़ एक नये रूप मे लुभाने को आ जाता है !

No comments:

Aabhas

अंतरात्मा     का  द्वंद  शांत  नहीं  होता। स्थिरता  और  ठहराव  में  शायद  ज़मीन  आसमान  का अंतर  होता  है।जीवन  स्थिर  हो  भी  जाए  तो , च...