कैसे ख़ुद को समझाऊं ?
कैसे दूर मैं हो जाऊं ?
पास उन के जन्नत है ,
कब तलाक़ जहन्नुम को रैन बसेरा बनूँ ?
हर पल गुज़रता है उनकी हसरत मे,
ज़माना है दरमियाँ कहो कैसे पास मैं जाऊं ?
हसरत है तो बस उनकी ....
कैसे उस शक्श को पाऊं ?
क्यू मितादून हर ख़्वाहिश ?
क्यू इस दिल को तद्पाऊ ??
कोई तो होगा फ़रिश्ता जो दिखाए रास्ता उस मंज़िल का ....
जहा चैन है सकूँ है ....
प्यार है जुनून है ,
कैसे उस फ़रिश्ते से मिलूं ?
कैसे उन्हे क़रीब लाऊँ ?
अब मंज़िल हैं वो मेरी ....
कहो ना.... मंज़िल तक का सफ़र तय करूँ
या रास्ता बदल दूँ , उन से दूर चली जाऊं ???
Sunday, October 21, 2007
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Aabhas
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