चाहत थी तुम्हे पाने की ...
स तो पूरी हो गयी ,
अब आरज़ू है साथ निभाने की...
तो क्यू तुम मुकरते हो ??
जब तलाक़ मेरे साथ जी ...
दुनिया हसीन लगती थी तुम को,
आज जब लोग पूछते हैं .... तो क्यू मेरी बदनामियो से डरते हो ?
क़दम जो उठाए हैं हमने .. उसे बहकावे का नाम ना दिया करो,
मुझे बदल कर बदलने वेल ... क्यू इस दुनिया से डरते हो ?
साथ दो मेरा .. मैं तकदीर बदल सकती हूँ ,
जानते हो यॅ तुम भी ... फिर दूर मुझे क्यू करते हो ??
हाथ पकड़ो मेरा . देखो मौसम बदलेगा ...
मेरी आरज़ू मेरे वाज़ूद से , तुम क्यू तौब करते हो ???
Sunday, October 21, 2007
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Aabhas
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