कल उसे कोई ढूँड रहा था,
चौरस्तो गलियारों मे,
कल उसे कोई पूछ रहा था सड़को मे , बाज़ारो मे,
उस किसी ने ना बताया मक़सद उसका और क्या था ,
पर अचानक हर घड़ी पर कोई अपशकुन सा हो रहा था ,
कोई और कोई नही था , अब बारी उसकी आ गयी थी ,
और अचानक हर मुसीबत उसके सर मंडरा रही थी ..
वो आहिस्ता से गिरा और बेआवाज़ टूट गया,
एक छोटा सा ख्वाब था मेरा,
टूकड़े हज़ार हो गया ,
कल ही तो आया था जग मे ,
कल ही उसकी आ गयी थी ,
वह रे दुनिया कुछ तो छोड़ा होता
अभी तो अरमानो की दुनिया मैं सज़ा रही थी ...
ख़ुश हूँ चलो एक ख्वाब देखने से पहले ही टूट गया
वो ही हुआ जो हर वक़्त होता है ,
एक और साथी छूट गया ... !
Monday, October 22, 2007
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Aabhas
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