Sunday, October 21, 2007

baawali takdeer... !

ए बावाली तकदीर ...
क्यू ले चली फिर उसी डगर को ?
जन्हा से कौत कर आए हैं.
आँखे नाम और दिल पर घाव ....
बड़ी मुश्किल से जान बचा पाये हैं
ए बावली तकदीर ..
क्यू सजाती है फिर से रंगी सपने ??
अभी तो ज़ेहन जला कर आए हैं
बड़ी मुश्किल से वो बीता वक़्त भुला पाये हैं ..

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