Monday, October 22, 2007

the midday dream !!!

चाँदनी कॅया शहद पी कर आती उनकी ख़ुश्बू पहने ठंडी हवाओ के ख्वाब,
दीं भर की तपीश को चाँद लम्हो के लिए ही सही ,
पर यू भुला जाते हैं ,
जैसे बारिश के मौसम मे मेरे कमरे के भीगते परदे
हवा मे लहरा कर चारे को छूते हुए ,
दिल तक आजाते हैं
यादों को और ज़्यादा ख़ुशनुमा ख़ूबसूरत बना जाते हैं ,
कैसे हैं यॅ सपने अचानक ही टूट जाते हैं ,
और मेरे कमरे के भीगते हुए परदे,
लहराते लहराते सूख जाते हैं ,
अचानक ही आँख खुलती है धूप के टुकड़े बिखर जाते हैं ,
तन्हाई का दामन ओढ़े लुटेरे ,
चाँदनी और तारो को लूट ले जाते हैं !

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Aabhas

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