चाँदनी कॅया शहद पी कर आती उनकी ख़ुश्बू पहने ठंडी हवाओ के ख्वाब,
दीं भर की तपीश को चाँद लम्हो के लिए ही सही ,
पर यू भुला जाते हैं ,
जैसे बारिश के मौसम मे मेरे कमरे के भीगते परदे
हवा मे लहरा कर चारे को छूते हुए ,
दिल तक आजाते हैं
यादों को और ज़्यादा ख़ुशनुमा ख़ूबसूरत बना जाते हैं ,
कैसे हैं यॅ सपने अचानक ही टूट जाते हैं ,
और मेरे कमरे के भीगते हुए परदे,
लहराते लहराते सूख जाते हैं ,
अचानक ही आँख खुलती है धूप के टुकड़े बिखर जाते हैं ,
तन्हाई का दामन ओढ़े लुटेरे ,
चाँदनी और तारो को लूट ले जाते हैं !
Monday, October 22, 2007
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Aabhas
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