एक रोज़ कभी अपनी मौत के गम मे,
रोने वाले बस हम होंगे
ना जहन्नुम के बाशिंदे,
ना जन्नत के महेमान
गुमनाम उस जाघा पर अपना पता पूछते हम होंगे,
रूह को मेरी हिला -हिला कर तुम पूछना
मेरी इस हालत के ज़िम्मेदार
तेरे प्यार के तोहफ़ा किए
वो गम होंगे बस गुण होंगे
Monday, October 22, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Aabhas
अंतरात्मा का द्वंद शांत नहीं होता। स्थिरता और ठहराव में शायद ज़मीन आसमान का अंतर होता है।जीवन स्थिर हो भी जाए तो , च...
-
ज़रा, कतरा और जां सी ज़िंदगी ... कभी सुभहा कभी शाम सी ज़िंदगी .... कभी कशमकश कभी आराम , कभी चाहत कभी नाकाम सी ज़िंदगी .... हर रांग मैं डू...
-
ज़िंदगी प्यार की छोटी होते है , चाहे कितनी गहरी हो दीवानगी ... मंज़िल तक पहुच जाए , यॅ ख़्वाहिश सब की कान्हा पूरी होती है ??? हर मुकाम प...
-
ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ... सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई, हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से .... मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई , ...
No comments:
Post a Comment