ज़रा, कतरा और जां सी ज़िंदगी ...
कभी सुभहा कभी शाम सी ज़िंदगी ....
कभी कशमकश कभी आराम ,
कभी चाहत कभी नाकाम सी ज़िंदगी ....
हर रांग मैं डूबी डूबी सी ....
कभी बेमतलब, बेनाम सी ज़िंदगी ...
हर वक़्त लगा रहता है लेना देना ,
कुशी का आटा गम का चावल पुरान,
बानीए की छोटी दुकान सी ज़िंदगी
कभी नाम, कभी पहचान ...
कभी मंज़िल ,कभी मुकाम सी ज़िंदगी ....
हर शय मे देती है जीने की सौगात ...
हर पल आती मौत का पैगाम सी ज़िंदगी !!!!
Sunday, October 21, 2007
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Aabhas
अंतरात्मा का द्वंद शांत नहीं होता। स्थिरता और ठहराव में शायद ज़मीन आसमान का अंतर होता है।जीवन स्थिर हो भी जाए तो , च...
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ज़िंदगी प्यार की छोटी होते है , चाहे कितनी गहरी हो दीवानगी ... मंज़िल तक पहुच जाए , यॅ ख़्वाहिश सब की कान्हा पूरी होती है ??? हर मुकाम प...
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ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ... सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई, हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से .... मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई , ...
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