हर चहरे को आईना समझा ,
अपना अक्स टटोलना चाहा ,
शायद आईना ख़फा था,
या मेरा अक्स मुझ से जुदा था,
जब भी झाँका गहराई तक ,
अंधेरा ही पसरा पड़ा था
क्या मेरा कोई अक्स नही है ?
या चहरा आईना नही है ?
हर ग़ज़ल मे हर नज़म मे ,
ऐसे आईने के बारे मे सुना है ,
क्या ऐसा कोई आईना मेरे लिए भी बना है ?
आज अपने आईने को पहचानू भी तो कैसे //?
अपने वजूद को जानू भी को कैसे ?
मैने तो ता उम्र कोई आईना नही देखा
क्या कोई चहरा मेरा अक्स दिखाने के लिए बना है ?
Monday, October 22, 2007
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Aabhas
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