Sunday, October 21, 2007

kaash

काश तुम समझ सकते इस दिल मैं क्या चुभा है ....
बेमतलब नही है यॅ बारिश , आसमान यू ही नही बहा है
मिट्टी की सोंडी सोँधी महक ... अब कोई तमन्ना नही जगाती है ...
चाँद और चाँदनी भी नया ख़वाब नही सजाती है !!
काश तुम समझ सकते .. क्यू हूँने छत पैर जाना छोड़ दिया,
काश तुम समझ सकते क्यू तुम्हे भुलाना छोड़ दिया !

आज तेरी दुनिया मैं नयी बहारें होंगी ...
नये रंग, नये गुल , नयी फ़िज़ाए होगी ...
पैर मेरी ज़िंदगी मैं आज भी यॅ मंज़र है,
तेरे दर की उस दीवार के बाद ....
मैने सर झुकाना छोड़ दिया !!!

मैं तदप करूँगा तेरे याद मैं, जाना
चाहे तूने मुझे अपने सपनो मैं बुलाना छोड़ दिया ...
यॅ घर छोड़ दिया, शहर छोड़ दिया .. और ठिकाना छोड़ दिया !
आते जाते रहते हो तुम तो .... क्यू मुझे बुलाना छोड़ दिया ?

काश तुम समझ सकते ...... तुम्हारे बाद मैने प्यार निभाना छोड़ दिया !!!

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