क्या मिलेगा अब और देख कर ,
ज़िंदगी एक वीराना है ,
किस्मत का रोना रोते रोते ,
ज़ख़्मो से यारी निभाना है ,
ज़ख़्म और भी क्या दे देगा
दर्द से तो अपना रिश्ता पुराना है,
हर ग़म को, हर चोट को ,
नाज़ से दिल पर खाना है,
हम मासूम समझ बैठे हैं ,
इस राह को मंज़िल का सफ़र ,
क्या मिलेगा यू भटक कर
ये तो ताना बाना है,
अपनी ही हँसी को भूल गाये हम ,
भूल भुलैया ही कुछ ऐसी है ,
दोस्ती नाते वफ़ा,
प्यार म्होब्बत सब परछाईं जैसी है ,
जहँ पड़ी रोशनी शोहर्त की
हर तरफ़ परछाईया थी अपने ही साए के जैसी ,
अब समंदर सूख गया है ,
किस्मत की तपीश ऐसी है ,
रोश्नियाँ जो खोई तो परछाईया सो गयी हैं ,
नींद से किसी को क्या जगाए ..
अब बस समय को आज़माना है ,
देखते है और क्या दिखाती है दुनिया ,
सामने पड़ा एक और ज़माना है !!!
Monday, October 22, 2007
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Aabhas
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