- इसशीतलहरमेंदुशालाओढ़ें, सुबहसुबहसारेदरवाज़ेखोलकरबैठीहूँखिड़कीसेबाहिरदेखतीहुई, अशोककेलम्बेपेड़झूमरहेहैंइनहल्कीहवाओंमें।एकखिड़कीकेशीशेकेझरोखोंसे, परदोंकीओटसेदेखतीहैदुनिया, कभीलगतीहैकितनीअपनीसी, औरकभीअपनायीसी!
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Aabhas
अंतरात्मा का द्वंद शांत नहीं होता। स्थिरता और ठहराव में शायद ज़मीन आसमान का अंतर होता है।जीवन स्थिर हो भी जाए तो , च...
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ज़रा, कतरा और जां सी ज़िंदगी ... कभी सुभहा कभी शाम सी ज़िंदगी .... कभी कशमकश कभी आराम , कभी चाहत कभी नाकाम सी ज़िंदगी .... हर रांग मैं डू...
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ज़िंदगी प्यार की छोटी होते है , चाहे कितनी गहरी हो दीवानगी ... मंज़िल तक पहुच जाए , यॅ ख़्वाहिश सब की कान्हा पूरी होती है ??? हर मुकाम प...
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ज़िंदगी नयी बसा रहा है कोई ... सूखे दरखतो पर बहार ला रहा है कोई, हमै बैर नही किसी की ख़ुशियों से .... मेरी मज़ार से दूर जेया रहा है कोई , ...
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